Saturday, 19 April 2025, 11:40,

पीके की 'बदलाव रैली' में कम भीड़ से उठे कई सवाल, नीतीश-तेजस्वी का 'विकल्प' बनने का सपना टूटेगा...

पीके की 'बदलाव रैली' में कम भीड़ से उठे कई सवाल, नीतीश-तेजस्वी का 'विकल्प' बनने का सपना टूटेगा...

पटनाः चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की बदलाव रैली से एक संदेश तो जनमानस के साफ गया कि अभी उनमें,उनकी राजनीतिक दृष्टि और चेतना में बदलाव की जरूरत है। बिहार की राजनीति को साधने को एक आधार तो ढूंढना होगा जहां खुल कर एक खास वर्ग के लिए नीतियां बनानी होगी। और उस खास वर्ग के लिए ही जीना और मरना होगा। और यह नीति फिर किसी बदलाव का इंतजार न करें। इंतजार करें तो सिर्फ अपनी बारी का।

 

पीके की रैली के असफल होने के कारण को समझें...

प्रशांत किशोर की पहली गलती भीड़ का ढिंढोरा पीटना रहा। एक तो असमय रैली की और तैयारियां का बिखराव तो जिला से ले कर राजधानी तक दिखी। प्रशांत किशोर के अपरिपक्व राजनीति का नजारा यह रहा कि उन्हें अपनी आंखों के सामने फजीहत का सामना करना पड़ा।

एक मजबूत तैयारी के अभाव में प्रशांत किशोर की यह असफलता कोई पहली बार नहीं हुई। बीपीएससी अभ्यर्थियों के समर्थन में आंदोलन करने के लिए प्रशांत किशोर ने पटना के गांधी मैदान में सत्याग्रह किया।

 छात्र-छात्राओं ने पुलिस की लाठियां खाई और एक साधारण प्रक्रिया का पालन नहीं करने के कारण खुद कोर्ट के चक्कर लगाए और इस आंदोलन का बंटाधार हो गया। व्यक्तित्व का फालूदा तो उस दिल निकल गया जब उन्होंने बीपीएससी अभ्यर्थी पर कंबल और खाना का तोहमत लगा गए।

अब उस दावे का क्या कहेंगे कि जो व्यक्ति बिहार की पूरी व्यवस्था को ठीक कर देने के लिए वादा करते चल रहे हैं वो अपनी भीतरी व्यवस्था तक नहीं कर सके।

 

पीके ने रैली की असफलता का ठीकरा सरकार - प्रशासन पर फोड़ा

प्रशांत किशोर ने रैली की असफलता का ठीकरा पुलिस प्रशासन पर फोड़ डाला। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इशारे पर काम किया। उन्होंने आरोप लगाया कि रैली के दिन गांधी मैदान में भीड़ नहीं पहुंचने के लिए पुलिस-प्रशासन की ओर से तरह-तरह की रुकावटें डाली गई।

प्रशांत किशोर के अनुसार लाखों की संख्या में जनसुराज के समर्थन को प्रशासन ने पटना में घुसने नहीं दिया। हजारों गाड़ियां को पटना के बाहरी इलाकों में कृत्रिम जाम की स्थिति बनाकर फंसाए रखा। इसके बावजूद जन सुराज के समर्थक चार घंटे से चिलचिलाती धूप में भूखे प्यासे डटे रहे। वो खुद चार घंटे तक प्रशासन से गुहार लगाते रहे, लेकिन प्रशासन ने उनकी नहीं सुनी।

 

गांधी मैदान की असफल रैली में पीके के बिगड़े बोल

कभी जदयू के रणनीतिकार और नीतीश कुमार के करीबी रहे प्रशांत किशोर क्या सीएम के हर फंडे से वाकिफ नहीं थे। बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है कहने वाले अपने ऑल माइटी के विरुद्ध तो किला चाक चौबंद करते। आप तो नीतीश कुमार की ताबूत में अंतिम कील ठोकने निकले और हथौड़ा ही भूल गए।

इस बदलाव रैली में एक बदलाव यह हुआ कि उनके बोल बदल गए। प्रशांत किशोर ने रैली में दावा किया कि वर्ष 2015 के चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार के साथ काम किया। तब उन्होंने मदद नहीं की होती तो आज नीतीश कुमार संन्यास लेकर कहीं बैठे होते।

लेकिन शायद नीतीश कुमार यह भूल गए कि जो शादी कराता है, वही श्राद्ध भी कराता है। जन सुराज पार्टी नीतीश कुमार का राजनीतिक श्राद्ध करेगी।

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